क्या आस्तिको ने ईश्वर को
परेशान करके रखा है ?
आपको लगेगा की कैसा प्रश्न है आस्तिक कैसे ईश्वर को परेशान करेंगे वह तो उसमें
आस्था रखे हुए है । कोइ आस्तिक मुझ पर गालिया बरसायेगा कि क्या तुम्हे हमारे
विश्वास पर भरोसा नहीं है तो उसे कहुंगा कि भरोसा तो है लेकिन परेशानी और भरोसे
में काफी अंतर है । चलिए बात विषय पर आते है । हा दोस्तो मान लिजिए कि आपने कोइ
मशीन बनाई और वह मशीन आपके हिसाब से न चलकर अपने हिसाब से चलने लगती है । चूंकि
आपने उन्नत मशीन बनाई है जो सोच समझ सकती है । वह मशीन आपकी पुजा करने लगती है तो
आपको शायद अच्छा लगे । वह मशीन आपको भेंट देती है आपको अच्छा लगेगा । आप खुश होंगे
। आपका हरेक काम करती है आप खुश होंगे मगर प्रश्न है कि आप खुश क्यो होते है ? शायद आप अब आराम
से जी सके । शायद आपका काम किसीने संभाल लिया आपको अब महेनत करनेकी जरूरत नही है आपको लगेगा कि मैरा
आधा काम अब और कोइ करेगा । आप खुश होंगे ।
आपकी रचना आपकी मदद कर रही है । आप यही सोच कर इश्वर को भी खुश करना चाहते
कि जिस तरह मेरी रचना यदि मेरे लिए कुछ करती है तो मे खुश होता हू उसी तरह इश्वर
की रचना यानि मै कुछ करूंगा तो इश्वर खुश होंगा । यहा आपको यह अन्तर समझना होगा कि
आप केवल मशीन बना सकते हो दुनिया नही इसिलिए तुम्हे तुम्हारी रचना से आनन्द मिलता
हो लेकिन जिसने सबकुछ बनाया हो उसे तुम्हारी कोइ मदद की जरूरत नही है तुम्हे लगता
है कि इश्वर को मेरी भेंट की जरूरत है अरे जो दुनिया बना सकता है वह भेंट कैसे नही
बना सकता तुम कितनी भी पुजा करलो लेकिन इश्वर के समान तुम कभी नही बन सकते । सीधी
सी बात है और यह बात आप जानते हि है आप कहेंगे इसमें परेशानी करने जैसी कोन सी बात
आती है ।
जब इश्वरने दुनिया बनाइ तब यह आस्तिक
का अस्तित्व नही था शायद लाखो सालो बाद यह आस्तिक आये यानि इश्वरने पहले से ही
दुनियो को सटिक बनाया था .। आस्तिको की रचना से पहले । इश्वर सब कुछ जानता है क्या
सही है और क्या गलत है इन सारी बातो को आप स्वीकार करते हो तो आप इश्वर को भोलेभाला क्यू समझते हो । आप
अपनी बात मनवाने का प्रयास क्यू करते हो । बारिश नही होती तो तप यज्ञ करने लगते हो
आप एसा मानते है कि आप के तप यज्ञ करने से इश्वर अपना निर्णय बदल देंगा । और इसका
दूसरा मतलब यह भी है कि आप इश्वर को कहना चाहते है कि कुछ गलत हो रहा है आप भूल सुधारिए । वह इश्वर जिसने दुनिया बनाइ
जो दुनिया चलाता है बखुबी चलाता है उसे आप सलाह क्यू दे रहे हौ । आपको विश्वास
रखना चाहिए कि इश्वर जो करेगा वह सही ही करेगा । आप सामने कोइ समस्या आती है तो आप
इश्वर को ब्लेक मेल करने लगते है अपने शरीर को कष्ट देते है और इश्वर को कहते है
कि यह करो वरना मै जान दे दूंगा इससे बात नही बनती तो लालच देते है कि तुम्हारे
लिए मै चलके आउँगा मे इतना तेल चढाउंगा आदि इससे बात नही बनती है तो बलि तक पहूंच
जाता है इससे बात नही बनती है सामूहिक बलि आयोजित करता है इससे बात नही बनती है तो
सेवा करने लगता है जैसे कि मानो वह कि
इश्वर पर उपकार करता हो । ओर इन सारी बातो से बात नही बनती है तो वह कहेगा हे
इश्वर तुम्हारे लिए मैने कितना कुछ किया मेरी भक्ति मे क्या कमी रह गइ उस इश्वर के
लिए जिसने दुनिया बनाइ उसे वह कहता है कि मैने तुम्हारे लिए क्या कुछ नही किया ।
आस्तिक चाहता है कि इश्वर उसके मत से चले इसिलिए वह उसकी पुजा करता है मन्नते
मानता है । आस्तिक चाहता है कि वह चाहे वही इश्वर को करना चाहिए उसके लिए वह
प्रयत्न करता रहता है। एक आस्तिक के लिए क्या आप मानते है कि इश्वर को आपकी दुआ के मुताबिक
चलना चाहिए । क्या आप मानते है कि इश्वर को आप सूचन कर सकते है । क्या आप एसा
मानते है कि इश्वर को आपकी चिन्ता करनी चाहिए ।
आपको बताना चाहूंगा कि इश्वर को समझना तो मुश्किल है लेकिन उनके सिद्धांत
कि जिसको हमे जाना है उसके आधार पर कुछ एसा कह सकते है जैसे कि गुरूत्वाकर्षण का
सिद्धांत आप बुरे हो या अच्छे आप इश्वर को मानते हो या नही मानते आपने दुवा कि हो
या नही कि हो आप जैसे भी हो यह सिद्धांत अपना कर्य करता है वह सभी को नीचे ही गिरा
देगा एसा कभी नही होगा की आपने इश्वर को भेट दी है तो आप नीचे नही गिरेगे । अगर
यदि एसा होता है तो उसका मतलब यही होगा कि गुरूत्वाकर्षण का सिद्धांत आपके अनुसार
चलने लगा है इश्वर के अनुसार नही । अगर एसा दुनिया कि हर चिजो के साथ होता है तो
इश्वर आप हो जाओगे और हा यह याद रखना कि आप अकेले नही है तो इश्वर के सिद्धांत यदि
दुवाओ पर काम करने लगा तो वह सिद्धांत नही रहता यदि वह सिद्धांत नही रहता तो
व्यवस्था नही रहती और व्यवस्था नही रहती तो दुनिया अस्तव्यस्त होगी । और आप इश्वर
को नही मानेंगे क्योकि इसी सुंदर व्यवस्था के कारण ही तुम इश्वर को मानते हो ।
आपको बता दू कि जब आप नही थे तब भी वह इसी सटिकता से ही दुनिया चलाता था और हा
लाखो सालो से वह सटिकता से दुनिया चलाता है और चलाता रहेगा एसा तो आप मानेंगे ही
और यदि आप इश्वर में विश्वास करते है तो इतना तो आप मानेंगे ही । यदि आप इतना नही
मानते तो आप इश्वर को नही मानते एसा कहा जा सकता है । आस्तिको की एसी भारमार लगी
है कि वह इश्वर को सूचना ही देते रहते है । तुम्हे यह करना चाहिए , तुम्हे वह करना
चाहिए । ओर यदि उसके मुताबिक नही चलता है तो कइ हथकंडे हाथ धरते है और इश्वर को
अपने कार्य से विमुख होने को कहते है । एसा होना न होना तो इश्वर के हाथ में होता
है लेकिन आस्तिक फिर भी अपनी पुरी जिंदगी उसमें लगा देता है ।एसा कार्य कि जिसमें
उसका कुछ नही चलता । वह जानता है कि मेरा कुछ नही चलेगा फिरभी वह उसी कार्य में
लगा रहता है इश्वर ने यदि कार्य किया (समस्या का समाधान किया) तो वह अपने आपको
होंसला देगा कि देखो मैने इश्वर के लिए इतना सब कुछ किया इसीलिए इश्वर ने मेरा कार्य किया लेकिन वह
जानता नही कि इश्वर तुम्हारी सोच से कार्य. नही करता वह अपना कार्य करना जानता है फिर भी वह लगा रहता है, मन्नते मानता जाता है
अपने आपको कष्ट देते जाता है तो इश्वर परेशान नही होगा तो क्या होगा इसलिए लगता है
आस्तिको से इश्वर परेशान है और इसीलिए यह
प्रश्न उठता है कि क्या आस्तिकोने इश्वर
को परेशान करके रखा है ?
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