Saturday, 16 June 2018

हाय ! रे ! परीक्षा


हाय !  रे परीक्षा
मे कहूँगा कि आपको कितनी गालिया आती है जितनी भी गालिया आति हो वह सारी कि सारी परीक्षा सिस्टम को दे दिजिए । गुस्सा इतना भरा है कि यदि परीक्षा जिवित होती तो उसे दिन में तारे दिखा दिए होते । मेरे अकेले का यह गुस्सा नही है कइ सारे लोगो का गुस्सा है । अब लोग परीक्षा के फेवर में बोलते नहीं है । बोलते नही उतना ही नही विरोध जताते है । फिर भी परीक्षा जाने का नाम नही लेती । बेशर्मी की भी हद होती है । इतनी बेशर्मी मैने तो कभी नहीं देखी ।  अब शायद परीक्षा का दूसरा नाम बेशर्मी ही रखना होगा ।
परीक्षा के न हटने का कारण एक यह भी है कि मूल्यांकन का उसके सिवा दूसरा रास्ता भी हमारे पास नही है । तो हम चाहे या न चाहे परीक्षा तो रहेगी ही । क्योकि एक ही रास्ता है तो उसी पर तो चलना पडेगा । तो सदियो से हम चले आ रहे है । गालिया देते जाते है और चले भी जाते है । इससे बडी मजबूरी मानवसमाज के लिए क्या हो सकती है । मजबूरी में गधे को भी बाप कहना पडता है तो परीक्षा को क्यू नही ।
संशोधन के अध्यापक का एक उदाहरण मुझे याद आ जाता है चू कि यह उदाहरण संशोधको के लिए फेवरिट होता है क्योकि संशोधन कार्य कि विश्वसनीयता बढाता है । चावल का उदाहरण , संशोधक होगे तो जरूर याद आया होगा । चावल चेक करने के लिए एक दो दाने चेक करलो यदि व दो दाने तैयार है तो पूरे चावल तैयार हो गए है एसा माना जाता है संशोधन इसी बातो पर टिका होता है । मगर यह बाते सभी जगह पर हम अमल नही ला सकते मानो कि एक गाव में पाँच लोग अच्छे है तो एसा निष्कर्ष कदापि नही निकाला जा सकता कि पूरा गाँव अच्छा है या बूरे है तो पूरा गाँव बूरे है । परीक्षा सिस्टम यही करती है । इतने विशाल ज्ञान के स्त्रोत मे से थोडा सा पूछ लेती है और मान लेती है कि यह आदमी को सबकुछ आता है या थोडा आता है । तो यह बात उस गाँव के समान होगी व्यक्ति शायद पूछा गया वही ज्ञात था बाकी का नही तो, मानो परिस्थिति उलट हो व्यक्ति को वही नही तैयार था जो पूछा गया बाकी मे वह मास्टर था तो क्या गलत निष्कर्ष नही निकलेगा । ऐसे तो काफी कठिनाइया परीक्षा सिस्टम मे है । जब परीक्षा अमल में आयी होगी तब जैसे संशोधको को वह दृष्टात कितना अच्छा लगता है उतना ही अच्छा परीक्षा को लाने वाले एवं उसे चाहने वालो को लगा होगा ।  
परीक्षा के कारण शिक्षा का व्यापारिकरण हो रहा है, बिना महेनत के पास होने कि लोग सोच रह है, रटन्त पद्धति फल पूल रही है। परीक्षा मे अच्छे अंक कैसे लाए उसके क्लासिस आज देखने को मिलते है। विषयवस्तु कितना बढिया है यह नही देखा जाता लेकिन परीक्षा कैसे हल करनी है यह देखा जाता है । शिक्षा में भ्रष्टाचार को बढावा मिलता है । प्रमाणपत्र बिके जाते है । एसी इनगिनत समस्याए जो भी शिक्षा के अन्तर्गत मौजूद है उसकी जडे कही न कही परीक्षा सिस्टम से है ।
चूँ कि हमारे पास दूसरा विकल्प नही है तो हमे इन सारी समस्या को या तो जेलना पडता है या कानून बनाने पडते है लेकिन उसका कितना अमलीकरण होता है शायद हम जानते है ।
प्रश्न यह उठता है कि परीक्षा किन कारणो से होती है ? मूल्यांकन करने के लिए । तो प्रश्न यह उठता है मूल्यांकन क्यो किया जाता है । योग्य व्यक्तिको न्याय मिले ।शायद बात इतनी सी ही है ।
कुदरत के सिस्टम मे नजर दौडाएगे तो पता चलेगा कि वहा परीक्षाए नही होती । कोइ कुत्ता परीक्षा देते नजर नही आयेगा । कोइ बिल्ली, कोइ पेड कोइ भी परीक्षा देते नजर नही आते । कुदरत के सिस्टममे परीक्षा है ही नही फिर भी डार्विन बताता है कि कुदरत मे योग्य ही जिन्दा रह पाता है अयोग्य आगे नही आ पाता । बिना परीक्षा, बिना मूल्यांकन योग्य को न्याय मिलता है । तो योग्य को न्याय दिलाने के लिए परीक्षा या मूल्याकन आवश्यक नही है ।
गुजरात के दो  व्यवसायो कि बात करूगा कि वह बिना मूल्यांन एवं बिना परीक्षा फलता जा रहा है ।एक है डायमन्ड कटिंग का व्यवसाय जिसकी कोइ परीक्षा नही होती फिर भी उस व्यवसाय में लाखो लोग कार्य कर रहे है । बिना परीक्षा के भारत के अर्थतंत्र को मजबूत कर रहे है । पूरे का पूरा सूरत शहर उस व्यवसाय पर प्रगति कर रहा है । योग्य ही वहा जाता है अयोग्य नही और जो अयोग्य है वह उसमे से ज्यादा हांसिल नहीं कर सकता।
दूसर है कन्स्ट्रक्शन का काम गुजरात में काफी लोग अपने आप कन्स्ट्रक्शन का काम चलाते है बिना परीक्षा दिए बीना मूल्यांकन पास किए।एक इन्जिनीयर पास एसा काम नही कर सकता वैसा काम आम लोग कर देते है । और वहा पर भी योग्य को ही न्याय मिलता है ।
एसे तो काभी व्यवसाय है जो बिना पढाई के, बिना परीक्षा के बिना मूल्याकन पत्र के काफी मजबूत है ।
      चयन का कार्य समाज को करना चाहिए यदि समूह चयन कर्ता है तो योग्य को जरूर न्याय मिलने कि संभावना है ।  मूल्यांकन करना जरूरी नही है । यदि मूल्यांकन जरूरी नही है तो परीक्षा कि कोइ आवश्यकता रहती नही है । मूल्यांकन का विकल्प कवेल परीक्षा हो सकती है । लेकिन मूल्याकन होना चाहिए या न होना चाहिए यह तो हमारे हाथ में है ।

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