शिक्षा के अर्थ मे बदलाव
होना चाहिए
इतिहास पर नजर करेंगे तो सहज समज आयेगा कि शिक्षा अपने आपमें सदैव बदलाव लाती
रही है और अपने अर्थ में भी बदलाव लाती रही है । शिक्षा का एक अर्थ कभी नही रहा है
। उसका गुण कहे या प्रकृति मगर शिक्षा अपने अर्थ में बदलाव लाती ही है या शिक्षा
के अर्थमें दलाव जरूर होता रहता है । सामान्य शब्दों में कहे तो शिक्षा शब्द एसा
शब्द है जो अनेक बाबतो के प्रयुकत होता रहता है कोइ कहे कि शिक्षा का यही अर्थ है
तो वह गलत होगा । क्योकि शिक्षा के कई अर्थ है । वही बात शिक्षा कि विशेषता है ।
शिक्षा कि इन विशेषता के कारण ही समाज को निश्चत दिशा मिली है यदि शिक्षा अपना
अर्थ न बदलता तो शायद समाज दिशा विहिन होता । और साज का दिशाविहिनता सुरक्षा
प्रदान करने में असफल रहती है ।
यदि शिक्षा का एक ही अर्थ रहता है तो शिक्षा कि प्रक्रिया भी एक ही रहती
शिक्षा के विभिन्न अंग भी एक ही रहते . कुए के पानि के समान शिक्षा एवं समाज बन
जाता है । बंधियार पानि के समान बन जाता है और वह पानि दूषित बन जाता है उसी
प्रकार शिक्षा एवं समाज भी दूषित बन जाते है । यदि शिक्षा के अर्थ में परिवर्तन
नही होता है तो समाज भी दूषित बन जाता है ।
शिक्षा के अर्थ
में परिवर्तन न होने के कारण
शिक्षा चूं कि
अपना अर्थ बदल ही देती है लेकिन किसी कारण शिक्षा के अर्थ में लंबे समय तक बदलाव
नही होता है । तो हमे उसके कारणो के बारे मे समझना चाहिए
शासन प्रणालि के स्वार्थीपन के कारण- जबसे
इन्सान सामाजिक बना है तब से किसी
न कीसी प्राकार शासक प्रणाली रही है जिसमे एक शासक होता है । वह शासक लंबे समय तक
अपने शासन को बनाये रखने , प्रजा को मुर्ख बनाए रखने अपनी पिढी को शासन देने के
लिए शासक शिक्षा के अर्थ में परिवर्तित होने नही देते है जैसे ही शिक्षा के अर्थ
में परिवर्तन होता है शासक शिक्षा के परिवर्तन को दबा देता है और शिक्षा को
परिवर्तित नही होने देती है । सासक वर्ग शिक्षा का संचालन अपने हाथो में ले लेते
है । और शिक्षा के अर्थ में परिवर्तन नही होने देते वह तो एक ही अर्थ वकरार रखने
के पक्ष में होते है और वह एसे ही प्रणालिया अमल में लाते है । और इस तरह शिक्षा
के अर्थ में लंबे समय तक कोइ बदलाव नही होता है ।
बहुपयोगी शिक्षा प्रणाली – यदि शिक्षा बहुपयोगी है समाज को उसका काफी लाभ मिला
है तो वह लंबे समय तक रहती है । उपयगिता के परिणाम स्वरूप वह अपने अर्थ में बदलाव
नही लाती है ।
धर्म के कारण –धर्म अपने विचार एवं रीतियो को कायम करने के लिए शिक्षा के अर्थ
में परिवर्तन नही लाने देते है । धर्म का समाज पर अपना प्रभाव रहा है । उस प्रभाव
के कारण धर्म एक ही प्रकार के अर्थ को पकड कर रहता है जिसके कारण शिक्षा के अर्थ
में परिवर्तन नही होता है । धर्म की अपनी विचार प्रणाली होती है और वह शिक्षा के
कारण मजबूत बनती है यदि शिक्षा के अर्थ में बदलाव होता है तो धर्म पर संकट आ जाता
है इसी कारण धर्म शिक्षा को परिवर्तित नही होने देते है ।
शिक्षा के अर्थ में परिवर्तन न होने से क्या होता है ?
हमने पहले चर्चा कर कहा है कि दूषित पानि कि तरह समाज बन जाता है और एक दूषित
समाज किन किन तकलिफो से गुजरता है वह हमे पता है । समाज मे कुरितिया, अंधश्रद्धा,
वहम, लडाई, युद्ध, अराजकता, शोषण, जातिवाद आदि सारी समस्याए शिक्षा के अर्थ में
परिवर्तन नही होने से होते है । यदि
शिक्षा के अर्थ में परिवर्तन नही होता है इसका मतलब यह होता है कि एक ही विचार कि
शिक्षा अमल में दूसरे शब्दों में कहे तो एक ही अर्थ कि शिक्षा अमल में है । समाज
में नये विचारो का आगमन ही नही होता है । समाज एक ही मार्ग पर चला जा रहा है । समाज
का एक ही मार्ग पर चलना यानि पानि का दूषित होना उसी तरह समाज का दूषित होना।
शिक्षा अर्थ नही बदलती तो शिक्षा के अभ्याक्रम में भी बदलाव नही आयेगा ।
अभ्यासक्रम में बदलाव नही आने से समाज मे एक ही प्रकार की शिक्षा अमल मे होगी और
समाज एक ही प्रकार का ज्ञान ग्रहण करेगा जिससे समाज कमजोर बनेगा । कमजोर समाज न प्रगति कर सकता है न संतुलन बना
सकता है । बिना संतुलन का समाज अराजकता के सिवा कुछ नही दे सकता ।
शिक्षा के अर्थ में परिवर्तन नही होने से समाज में सर्जनात्मकता की कमी होती
है । बिना सर्जनात्मकता के समाज कि क्या दशा होती है उसकी क्ल्पना हम कर नही सकते
।
शिक्षा के अर्थ में परिवर्तन न होना इसका मतलब यह होता है कि जैसे डॉक्टर के
द्वारा एक ही प्रकार की दवा का डोस देना ।
उपरोक्त परिणामो को ध्यान में रखकर हम कह सकते है कि शिक्षा के अर्थ में
परिवर्तन होते रहना चाहिए ।
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