यदि संस्कृत अपनी
प्राचिनता खो दे तो क्या होगा ?
यह विषय आजकल थोडी सर्चा का बना हुआ विषय है । भारतीयो कि आस्था संस्कृत के
साथ रहती जरूर है लेकिन सत्य को भी तो स्वीकार करना ही पडेगा । प्राचिनता का नाम
जैसे आता है संस्कृत अपना नाम पुकारने लगती है । आज तक प्राचिनता के संस्कृत का
नाता एसा बना हुआ है कि संस्कृत कि हर बात प्राचिन मानी जाति है । संस्कृत को यहाँ
तक प्राचिन माना जाता है कि वह दुनिया कि शरूआत से है । देवभाषा के नाम से मानी
जानेवाली यह भाषा कहा जाता है कि दुनिया कि प्रथम भाषा है । और यह भी कहा गया है
इसी भाषा में प्रथम लिखा गया है । मनोवैज्ञानिक तरिको से सोचे तो प्राचिनता के साथ
इन्सानी जुडाव रहता है । प्राचिनता को इन्सान स्वीकर कर लेता है वह भले ही उसे
गुलाम बना ले । प्राचिनता इन्सानी दिमाग पर हावी रहती है । यदि कोइ चिज प्राचिन है
तो उसमें आस्था ज्यादा बैठती है । इसीलिए हर कोइ अपनी विचारधारा को प्राचिन बतानेमं
तुला हुआ सा लगता है । जिससे उसके विचार को बल मिले ।
बात बहुत गंभीर है कि संस्कृत अपनी प्राचिनता खो रही है । अब तक की खोजो ने
संस्कृत को कमजोर सा बना दिया है । अगर कोइ नयी खोजे हो और कोइ सबूत मिले तो बात
और है लेकिन वेदो के सिवा संस्कृत के पास अपनी प्राचिनता साबित करने का कोइ सबूत
नही है । लेकिन बात यह है कि आजकल का मानवी बिना सबूतो के कोइ बात नही मानता । बात
ऊठाई है डॉ.राजेन्द्र प्रासादने जो एक भाषा वैज्ञानिक है । उन्होने दावा किया है
कि संस्कृत इसा पूर्व कि भाषा नही है । उनका कहना है संस्कृत का कोइ शीलालेख इसापूर्व
का नही मिला है । अशोक के जो शिलालेख मिले है वह पालि एवं युनानी भाषा के है । वह
तो यहा तक कहते है कि अशोक के शिलालेखो में संस्कृत का कोइ शब्द नही मिलता है इससे
साबित होता है संस्कृत इसा पूर्व कि भाषा नही है । इतना ही नही संस्कृत का कोइ लोक
साहित्य भी नही मिलता। संस्कृत का कोइ भूमिपृष्ठ भी नही मिलता । मान लिजिए यह बात
सत्य हो और सत्य साबित हो जाए तो मुझे वह भेड बकरीयो कि गोपाल कि वह कहानी याद आती है
जिसमें गोपाल शेर आया शेर आया एसा झूठ बोलकर लोगो को उल्लू बनाता था जब असली में
शेर आया तो किसीने विश्वास नही किया बात यह है कि झूठो कि बात कोइ नही मानता
। यदि कोइ बात झूठ साबित होती है तो उसकी
पूरी बातो को झूठ साबितमाना जाएगा। भारतीय
प्राचिन इतिहास की कहानिया कहा जाता है कि वह सब संस्कृत में लिखि गइ है वह सत्य
है प्राचिनता खोने के बाद वह सारी लिखि गइ बाते झूठ मानी जायेगी । जिस साहित्य को
इश्वर निर्मित माना गया है उसे कोइ स्वीकार नही करेगा । नये से पूरे इतिहास को
गढने कि जरूरत उभर कर सामने आएगी । संस्कृत में लिखि किसी बात को कोइ मानने को
तैयार नही होगे । झूठी एसा उपनाम भी संस्कृत को मिल सकता है । सारी चममत्कीरिक
बाते अपना अस्तित्व खो देगी । प्राचिनता खोने के बाद कौन उसे पढना चाहेगा ।
संस्कृत को कोइ सिखना भी नही चाहेगा । इतनी कफोडी स्थिति होगी कि उसे कोइ पानी
पिलाने वाला भी नही मिलेगा । संस्कृत को भारतीय सभी भाषा कि जननी मानी गइ है वह
बात गलत होगी । भाषा वैज्ञानिको को सब गालिया देगे कि उसने सबको झूठा ज्ञान दिया ।
एक भाषा वैज्ञाननिक होकर झूठा ज्ञान देना अपराध है । और वह सब अपराध कि सजा
भूगतेंगे । संस्कृत के पीएचडी लोग मातम मनाएंगे । संस्कृत की प्राचिनता खो जाने पर
भारतीय संस्कृति का एक नया इतिहास सामने आ सकता है । वह संस्कृत के मंत्र उसे नही
भूल सकते वह तो संताकूकडी खेलेंगे । वह रास्ता भूल जायेंगे कि कहा जाना है ।
संस्कृत कि प्राचिनता खोने पर भारत कि संस्कृति ही बदल जायेगी । भारत कि परंपरा
बदल जायेगी । त्यौहार बदल सकते है । जिसकी पूजा होती है उसका अपमान करने लगे और
जिसका अपमान होता है उसकी पूजा भी हो सकती है । और यह साबित होगा कि भारत कि
प्राचिनता संस्कृत से नही है । संस्कृत से पहले बहुत पहले भारत का अपना इतिहास रहा
है एसा लोगो को समझाना पडेगा । चाणक्य का वह अर्थशास्त्र जो माना जाता है कि
संस्कृत में लिखा है उस पर संशोधन की मांग ऊठेगी और झूठ साबित होने पर उसका प्राचर
करने वालो को भी सजा हो सकती है । संस्कृत के उस साहित्य कि जिसे प्राचिन कहा गया
है उसे सब झूठा साहित्य कहेंगे वह साहित्य अस्तित्व के लिए शायद गिडगिडानेलगे शायद
कही हमे वह म्यूझियम में मिल जाए । और अन्त शिक्षा क्षेत्र में पढाया जायेंगा कि
एक झूठी भाषा थी उसका झूठा इतिहास था उसकी झूठी कहानिया थी एसा हम भारतके वासी
सदियो तक सिखते आये हमे इस झूठी भाषा के किसी भी ज्ञान को मानना नही है । मित्रो
इससे भी गंभीर समस्या आ सकती है यदि संस्कृत अपनी प्राचिनता खो दे तो आशा है कि
संस्कृत अपनी प्राचिनता बनाए रखे र कोइ शिलालेख मिल जाए जो पांछ हजार साल पूराना
हो और संस्कृत में लिखा है और हा उसमें आधुनिकता के कोइ शब्द न हो एसी आशा सह अस्तु ।
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