Tuesday, 3 July 2018

क्या योग भी नास्तिक हो गया है ?


क्या योग भी नास्तिक हो गया है ?
आज नास्तिकता बढती जा रही है । लोग नास्तिक बनते जा रहे है । तो उसका प्रभाव योग पर पडना सहज है । योग इन्सान तो नही कि वह नास्तिक या आस्तिक हो लेकिन योग को यदि समझने कि कोशिश करेंगे तो आधुनिक योग कही न कही नास्तिकता को ज्यादा प्रधानता देता है । योग कि प्राचिनता पतंजलि जूडी है एसा माना जाता है लेकिन इससे पहले योग कहा था इस विषय में कोइ कम ही बोलना चाहेगा । चलो हम योग के अर्थ को देखते है । योग का अर्थ होता है जुडना । इश्वर से जुडना । यानि यह एक आस्तिक विचार है । अगर इस संदर्भ में देखे तो ऐसा कोइ भी कार्य जो ईश्वर को जोडने में सहायक होता है वह योग है । सामान्य रूप से आस्तिकता यह बताती है कि इश्वर से जुडने का मार्ग अपने शरीर को कष्ट देना है । तो वह सालो तक अपने हाथ को उठाये रखते है और बोलते है मे योग कर रहा हू । सुबह उठकर माला जाप करेंगे तो कहेगे योग कर रहा हू । आस्तिकता जहा पर भी होती है वहा शरीर को कष्ट देने में विश्वास रखती है । वह शरीर को कष्ट इसलिए देते है कि उससे इश्वर से उनका जुडाव हो । यानि उसके पिछे शरीर के हित में कोइ बात नही होती । शरीर को कष्ट देना महत्वपूर्ण है शरीर को सुरक्षित करना महत्वपूर्ण नही है । शरीर को किसी भी रूप में लंबें समय इसलिये रखते है क्योकि उससे इश्वर प्रसन्न हो । वह एसी कोइ भी बात नही करते जिससे इश्वर नाराज हो ।  वह जंगल में जाते थे एक ही मुद्रा में बैठते थे । कइ सालो तक बैठते थे । केवल इस आशा में कि इश्वर से उनका जुडाव हो जाये । तो वह अलग अलग मुद्रा में जंगल में जाकर लंबी अवधि तक बैठा करते थे और यह मानते थे कि इससे इश्वर से उनका जुडाव हो जायेगा । एसी हरेक क्रिया या मुद्रा को योग माना जाता है जिससे इश्वर से जुडाव हो वह क्रिया शायद बैठने, सोने, खाने, भूखे रहने आदि के संदर्भ में हो सकती है । कोइ भी क्रिया जिससे इश्वर से जुडाव होता है वह योग कहलाता था । इसका मतलब यह ता है कि जो क्रिया इश्वर से जुडनेमे सहायता नही देती वह योग नही मानी जाती  थी । योग करने का कारण इश्वर से जुडने का था । इस अर्थ के संदर्भ में देखे तो योग केवल इश्वर से जुडने की क्रिया है । उसमें शरीर हीत की बात नही होनी चाहिए । उसमें कोइ तर्कता भी नही होनी चाहिए । इसलिए योग को आस्तिक माना जाना योग्य था लेकिन आज योग का अर्थ बदलना होगा । क्योकि योग को इश्वर के साथ जुडाव के लिए नही किया जाता है । इश्वर को हटा दिया गया है । योग इसलिए किया जाता है कि जिससे आपका शरीर तन्दुरस्त बने आराम पूर्ण बने कष्ट से दूर रह सके । जब कि आस्तिकता कष्ट को ज्यादा महत्व देती है । शरीर से कष्ट देने से इश्वर प्रसन्न होगे । लेकिन आज का योग तो विरोधी अर्थ में प्रयुक्त हो रहा है । वह तो शरीर को कष्ट न हो इसीलिए किया जाता है । दूसरी बात आज उसे कुछ निश्चित समय मर्यादा में किया जाता है । जब कि आस्तिकता में योग निश्चित समय मर्यादा में नही होता । वहा तो करते ही रहना है वरना इश्वर से आपका जुडाव नही होगा । आस्तिक मत इश्वर को ही कर्ता हर्ता मानते है तो वह यह कभी नही स्वीकार कर सकते कि योग से उनका शरीर शुद्ध हुआ है वह तो यही मानगे कि इश्वर ने उनका शरीर शुद्ध किया । योग से केवल इश्वर से जुडा जाता है । योग इसलिये करना चाहिए ताकि आप इश्वर से जुड सके । शरीर शुद्धि उनका उद्देश्य होता ही नही है । लेकिन आज योग शरीर शुद्धि के लिये किया जाता है । आज योग ने इश्वर को हटा दिया है तो हम कह सकते है कि योग भी नास्तिक बनता जा रहा है ।

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