नास्तिक आस्तिक के एक कार्य मात्र से नस्तिक नही रहता
आप सोचेगे कि लेखक क्या कह रहा है । हा दोस्तो बात सही है । आस्तिकता मे से
नास्तिकता खडी होती है तो नास्तिकता मे से आस्तिकता भी खडी हो सकती है । शायद नास्तिक
कही संपूर्ण रूप से नास्तिक न बना हो जो कि एसा संभव नही है क्योकि जो नास्तिक बनता है वह आस्तिकता
का संपूर्ण विद्रोह करके आता है । लेकिन प्रश्न तब उठता है जब नास्तिक एक आस्तिक
को समझाने जाते है । नास्तिक ऐसा समझता होता है कि मैने सत्य जान लिया है तो वह सब
को सीख देता रहता है । और आस्तिक उसे टालता रहता है । आस्तिक के पास काफी कहानिया
है जो नास्तिक के तर्को के उत्तर के रूप में आ जाया करती है । नास्तिक बनता है तो
उसे अपने मन को शुद्ध करना पडता है । अंधश्रद्धा से दूर होना पडता है । असत्य बातो
से दूर होना पडता है । उसे झूठी कहानियो से दूर रहना पडता है । उसे चमत्कारिक
विज्ञान के अभाव की कहानियो से दूर रहना पडता है । अहिंसा को अपनाकर जिवन जिना
पडता है । और हिसा से दूर रहना होता है असे अपनी आप कि शक्ति
को बढाना होता है तो वह योग आदि को ज्यादा महत्व देता है तब जकार एक नास्तिक बना
जाता है । उसमें अंधश्रद्धा नही होती । यदि यह गुण किसी में है तो वह नास्तिक है ।
जो कि नास्तिक के ये गुण अति महत्वपूर्ण होने से नास्तिक इसे अपनाता है लेकिन कुछ
बाते वह अपना लेता है वह अहिंसा, सत्य आदि जैसे गुणो अपना लेता है लेकिन वह
अंधश्रद्धा मे जीता है तो वह नास्तिक नही कहलाता भले उसने नास्तिको के सभी गुणो को
अपना लिया लेकिन एक गुण अपनाने मात्र से वह नास्तिक नही रहता है । इसलिए नास्तिक
को अपने कदम संभल संभल कर ऱखने होगे । उसे यह सोचना होगा कि वह तभी नास्तिक
कहलायेगा जब वह अहिसा से जिवन यापन करेगा , सत्य को अपनायेगा । अंधश्रद्धा को
छोडेगा । अपने पर पूर्ण श्रद्धा से जिवन यापन करेगा और समाज कि बदियो को अस्विकार करेगा तभी वह नास्तिक बन
सकता है । उसने इसमे से एक को भी न अपनाया तो वह नास्तिक नही रहता है ।
नास्तिक का कर्म आस्तिको का विरोध करना कदापि नही है नास्तिक को केवल
नास्तिकता को अपनाकर जिना है तो नास्तिक को एक वैज्ञानिक अभिगम को अपनाकर जिना है ।
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