प्रकृति को साथ में रखकर ही.......
विकास कि परिभाषा हमारे सामने नही हो तो हम कैसे कह सकेंगे कि हमने विकास किया
। किसी चिज में हमने प्रगति कि है वह हम कैसे कह सकेंगे । बात सामान्य लगती है कि
यह तो सामान्य सी बात है । लेकिन बात यह है कि क्या किसी इन्सान के द्वारा तय किये
गये मापदंडो से मानवजाति के विकास कि परिभाषा निश्चित कि जा सकती है । सवाल काफी
है जो हमें मुश्केली में डाल रहे है । मानवने खोजे काफी कर ली है लेकिन समस्या तो
वही कि वही है । एक मापदंड से देखते है तो
दुनिया का साफ विकास दिखता है और दूसरे
मापदंड से देखते है तो दुनिया का विकास का जो ग्राफ है वो नीचे कि तरफ आता दिखाई
देता है । डॉ. विश्वरूप रोय कहते है कि कुवैत देश में सभी अमीर है वहा के शासक आम
जनता को काफी पैसे देते है यानि वहाँ किसी को काम पर जाने कि जरूरत नहीं है । यानि
इस संदर्भ में उसका विकास हुआ ऐसा कह सकते है लेकिन डॉ. विश्वरूप बताते है कि वहां
मधुमेह, हार्टएटेक. ब्लड प्रेसर आदि बिमारिया सबसे ज्यादा पायी जाती है यानि इस
मापदंड से कुवैत देश का विकास का ग्राफ नीचे आता है । बात साफ है कि जिस मापदंड से
विकास हुआ उससे सही में विकास हो पाया है । सवाल काफी है । मानवी को इतिहासिक
पन्नो से देखे तो मानवी कि विकास कि परिभाषा का मापदंड इन दोसो सालो में कुछ अलग
ही रहा है । साठ हजार से भी ज्यादा सालो से इन्सान इस दुनिया में है और जिव सृष्टि
तो करोडो सालो से इस पृथ्वी पर है और दुनिया अरबो सालो से चल रही है इसमें मानवी
केवल सो साल बिताता है और मापदंड तय कर जाता है । तो बात थोडी अजीब सी लगती है मानवी ने अपनी सुविधा के लिए काफी चिजो
का निर्माण किया, सर्जन किया दुनिया को समजा और जो समज प्राप्त कि उसका संग्रह
करता गया और वह मानवी का ज्ञान बन गया । इतिहास साबित करता है कि मानवी के द्वारा जो समज
विकसित कि गई वह समय समय पर बदलती गइ है यानि मानवीने जो ज्ञान संग्रह किया वह
बदलाव पूर्ण है । उसमें परिवर्तन आ सकता है । उससे हम कइ अर्थ निकाल सकते है । वह संग्रहित ज्ञान से अराजकता फैली है,
पर्यावरण में दुष्प्रभाव भी ये है,
सामाजिक समस्याये निर्मित हुइ है, आर्थिक समस्याये निर्मित हुइ है, मानवी
के ज्ञान उसे समानता, सुरक्षा, गौरवपूर्ण जिवन, आनंददायक जिवन मिलना चाहिए था लेकिन जो असर होनी चाहिए
थी उससे उलट असर देखने को मिलती है ।
हमें यह बात समझनी चाहिए कि पर्यावरण ही हमें बचाता है । हम अवकाश में जाते है तो वहा के पिंडो में
पर्यावरण को खोजते है । पर्यावऱण और जिवन अलग नहीं है । पर्यावरण के सहारे ही हम
ज्यादा समय तक इस दुनिया पर अपना अस्तित्व बनाये रख सकेंगे । यदि पर्यावरण खतम हो गया तो जिवन दूसरे दिन खतम
हो जायेगा फिर जिस मापदंड से विकास देख रहे है उसका भी अस्तित्व नहीं रहेगा ।
परोपजिवी को अपना विकास करना है तो वह जिस पर निर्भर है उसे कभी खतम नहीं करता या
तो वह परोपजिवी न रहकर आत्मनिर्भर बन जाये । और हम एक परोपजिवी है हम पर्यावरण के
सहारे जिवन जि रहे है ।
जिस मापदंड से हम विकास को देखे लेकिन हमें पर्यावरण को सुरक्षित रखना ही
चाहिए और सुरक्षित का मतलब है बागाडना नहीं चाहिए । हमें पहले हमारी सुरक्षा सोचनी
चाहिए और सुरक्षा के बाद हम विकास कर सकते है । और सुरक्षा कवच ऐसा कि जिसमें एक खिडकी
हो और हम चाहे तब उस खिडकी से बाहर निकल सके । लेकिन आफत न आये उसके लिए सुरक्षा
कवच बनाना ति आवश्यक है ।
यदि हम सुरक्षित
है तो हम निश्चिंत है और यदि हम निश्चिंत है तो हमारी सोच हमारा ज्ञान भी उन्नत हो
सकता है । तो मानवी के विकास का जो भी मापदंड जो भी हो लेकिन पर्यावरण कि सुररक्षा
एवं जिवन की सुरक्षा उसका पहला कदम बनता है ।